प्रेम कविता : मुझे कुछ कहना है

सुनो

तुमसे एक बात कहना है

मुझे यह नहीं कहना कि

तुम बहुत सुंदर हो

और मुझे तुमसे प्यार है।

मुझे प्यार का इज़हार भी नहीं करना

मुझे कहना है कि तुम

बहुत दुबली हो गई हो

सबका ख्याल रखते रखते

कभी अपने तन मन

को भी निहार लिया करो।

रिश्ते निभाते निभाते

तुम भूल गई हो कि

तुम एक अस्तित्व हो, तुम एक मनुष्य हो मशीन नहीं।

तुम्हारा भी एक मन है

एक तन है

उस मन में बचपन की

कुछ इच्छाएं हैं, कुछ बनने की

कुछ बुनने की।

तुम्हारा सुंदर तन

रिश्ते मांजते हुए, रह गया है एक पोंछा।

 

तुम्हें जब भी गुस्सा आता है

तुम पढ़ने लगती हो किस्से कहानियां और ग्रंथ।

जब तुम्हें रोना आता है तो

बगीचे में पौधों से बात करती हुई

पौंछ लेती हो पत्तियों से आंसू

प्रेम की परिभाषा को बदल दिया तुमने

कहते हैं प्रेम सिर्फ पीड़ा और प्रतीक्षा देता है।

तुम्हारा प्रेम खिला देता है 

मन के बगीचे में कई 

सतरंगी गुलाब।

 

जब भी तुम्हें देखता हूं

तुम्हारे आंसुओ से पूछता हूं

तो बस एक ही उत्तर

बस थोड़ा सा दिल टूटा है

थोड़े से सपने बिखरे हैं

थोड़ी सी खुशियां छिनी हैं

थोड़ी सी नींदें उड़ीं हैं

और कुछ नहीं हुआ है।

 

जब भी मैंने तुम्हें सम्हालने

के लिए हाथ बढ़ाया है

तुमने मेरी हथेली पर 

उसका नाम लिखा है।

जो तुम्हारा कभी नहीं था।

 

सुनो लौट आओ

दर्द के समंदर से।

प्रेम अस्तित्व की 

अनुभूति से होता है

शरीर से नहीं।

 

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